Rajani katare

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न भाए श्रृंगार




लेखनी ओपन प्रतियोगिता
दिनांक-5 /5/22

                    "न भाए श्रृंगार"

न भाए मुझको अब श्रृंगार,
बैंदी माथे की पट्टी,
सब तुझ पर वारि,
तेरे शीष का वो,
दमकता टीका कहाँ से लाऊँ,
रोशन होती जिससे,
प्यारी बिंदिया मेरी, 

न भाए मुझको अब श्रृंगार,
कानों के झुमका,
नाक की नथुनिया,
सब तुझ पर वारि, 
तेरे रुप का दर्पण, 
कहाँ से लाऊँ,
कि झिलमिल होते,
झुमका ओ नथुनियां,

न भाए मुझको अब श्रृंगार,
हाथों की चूड़ियां,
ओर गले को हरवा,
सब तुझ पर वारि,
दिल की मासूमियत, 
कहाँ से लाऊं,
तुझसा दिलदार,
जो मेरे दिल को महका दे,

न भाए मुझको अब श्रृंगार,
न पायल न बिछुआ,
न मेंहदी महावर,
सब तुझ पर वारि,
वो दमकती लाली,
कहाँ से लाऊं,
दिल तेरे जैसा,
जो मन मेरा रतनार कर दे,

न भाए मुझको अब श्रृंगार,
न लाल चुनरिया,
न भाए फुलकारी गोटा,
सब तुझ पर वारि,
चहकती हंसी ठिठोली,
कहाँ से लाऊं,
तेरे जैसा ऐतबार,
तेरे जैसा फरमादार बन ले,

न भाए मुझको अब श्रृंगार,
न भाए मुझको....।

     काव्य रचना-रजनी कटारे
           जबलपुर म.प्र.



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4 Comments

Shnaya

06-May-2022 01:07 PM

👌👏🙏🏻

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Reyaan

06-May-2022 11:25 AM

👏👌

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